मीठी या खट्टी लगे स्वाद समझ न आये
ऐ दाना ऐ मूंगफली मन को तू अति भावे
बच्चे बूढ़े अमीर गरीब सबको ही ललचावे
ऐ दाना ऐ मूंगफली मन को तू अति भावे
छिलका जैसे हो कवच लाल तेरी है चुनरी
जितना भी खाये कोई नीयत कभी न भरती
मन ललचाता ही रहे पेट चाहे भर जावे
ऐ दाना ऐ मूंगफली मन को तू अति भावे
यारों और परिवारों को तू ही साथ ले आती
कोई भी बैठक सजे बिन तेरे न सुहाती
चाय की हो या वाय की हर पार्टी में छावे
ऐ दाना ऐ मूंगफली मन को तू अति भावे
टाइमपास तुझको कहें कोई कहे शिन्गदाना
गुड़ के संग दोसती जमें लेता लुत्फ़ ज़माना
तू बादाम गरीब का मन धनवान बनावे
ऐ दाना ऐ मूंगफली मन को तू अति भावे