सच, सच तेरी मेरी सोच पे पड़ा एक पर्दा है
सच, झूठ को सच बताने की एक अदा है
वर्ना तेरा सच मेरे सच से अलहदा क्यों है
सच जो खुदा है तो दोनों का जुदा क्यों है
हम दोनों आधे सच आधे झूठ के आदी हैं
तेरा और मेरा दोनो का ही सच मियादी है
मैं एक झूठ हूँ और वज़ूद तेरा भी सच नहीं
मिट जाऊंगा मैं एक दिन रहेगा तू भी नहीं
सूरज चाँद तारे धरती पहाड़ और ये समंदर
आज सच हैं मगर नहीं है भरोसा कल पर
कहते हैं जब कहीं कुछ नहीं था तो सच था
जहाँ जो फानी है तो जहाँ से पहले सच था
रौशनी एक मियादी सच है पूरा सच अँधेरा है
ज़िन्दगी सच है मियादी पूरा अंत तेरा मेरा है
कायनात से पहले था क़यामत के बाद होगा
ये जहाँ जब न होगा तो सच मौजूद होगा
झूठ के पाँव नहीं तो मियादी सच लंगड़ा है
तो किस बैसाखी पर ये अपना जहाँ खड़ा है
सच असल में वह नहीं है जो जहाँ पूजता है
झूठ का निशाँ नहीं जिसमें सच,सच में खुदा है