चोट लगी ऊँगली दिखाता था मुझको
बातें सब दिल की बताता था मुझको
ज़ख्म ज़िन्दगी के अब छुपाने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
गले लगकर अपनी मांगें मनवाता था
फरमाइशों से अपनी चीज़ें मंगवाता था
संकोच में अब मन छुपाने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
दुनिया सारी जिसकी मुझमें समायी थी
बेटे से अधिक कहीं यारी निभाई थी
फर्क अपनी दोस्ती में आने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
शक्तिमान था उसका हल्क था मैं तो
हीरो था जिसका आईन्स्टीन था मैं तो
जीरो का फर्क अब मुझे बताने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
मोबाइल पर यारों से घंटों बतियाता है
खुद जाता है दोस्त घर पर बुलाता है
बस मुझसे बहाने बनाने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
याद आते हैं दिन जब मस्ती करते थे
साथ बैठ कर दोनों टाइमपास करते थे
बिज़ी हो गया है वह कमाने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
शिकवा नहीं यह शिकायत नहीं है
चाहत में उसकी ख़यानत नहीं है
बढ़ना है जीवन ज़िन्दगी यही है
दिल जानता है कुछ गलत नहीं है
अनजाना डर मगर सताने लगा है
बेटा अब दूर मुझसे जाने लगा है
वाह। क्या बात। बेहतरीन रचना।
समय की आपाधापी,
सबकुछ बदल रहा,
ख्वाहिशें,मंजिले,
मौसम और उम्र भी ढल रहा,
कल पढ़ता था अब पढ़ाने लगा है,
हाँ बेटा अब दर्द छुपाने लगा है।
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बहुत खूबसूरत रचना , एक पिता के मन की व्यथा आपने बहुत सटीक शब्दों में कही है।
👌👌
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दिल को स्पर्श करती है ये कविता । बेहद करीबी।💕💔
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