तुम एक सुबह छोड़ गयी
मैंने सहा कुछ न कहा
वो कहते हैं घर अब
पुराना हुआ छोड़ दो
क्या कहती हो छोड़ दूँ ?
याद है घर की दहलीज़ पर
हमने साथ रखे थे कदम
पैरों के निशान
आज भी मौजूद हैं
कैसे छोड़ दूँ?
आँधियों से गिरती
कच्ची दीवारों को
जो पूरी रात थामा था
मिटटी में पसीने की महक
आज भी कायम है,
कैसे छोड़ दूँ ?
वो जगह जहाँ तुम
जलाया करती थी
भक्ति का दिया रोज़
उसकी लौ की कालिख
अब तक वहां छपी है,
कैसे छोड़ दूँ ?
घर की सीढ़ियों से देखे थे
जो आसमान से ऊँचे ख्वाब
मेरी रातों में उन ख्वाबों
की सदा आज भी है
कैसे छोड़ दूँ ?
घर की क्यारियों बेसाख्ता
तुमने जो बीज डाल दिए थे
उग आये हैं, फूल आज भी
तुम्हारी हंसी में खिलखिलाते हैं
कैसे छोड़ दूँ?
तुहारी याद तुम्हारे ख्वाब
तुम्हारे निशां तुम्हारी छाप
जीवन के आखिरी सफर में
बच गयी बस यही पूंजी है
तुम कहो कैसे छोड़ दूँ?