पावक दहकी क्षितिज क्षितिज में
ग्रीष्म ऋतू आयी यौवन पर
उष्मायी धरती निज उर में
पावक दहकी क्षितिज क्षितिज में
कुंदन बदन दमकती काया
सुन्दर रूप क्यों है तमतमाया
क्यों रूठे हो क्यों बैठे हो
सूर्यदेव क्रोधित अम्बर में
पावक दहकी क्षितिज क्षितिज में
बिन जल ताल तलैया सारे
कुंए बावड़ी सूखे नाले
सूनी जलधारा बन बन में
पावक दहकी क्षितिज क्षितिज में
गर्म हवा की चुभन हैं पैनी
घर बाहर चहुँ दिश बेचैनी
बिजली गुल और बिन पंखे के
अफरातफरी है जन जन में
पावक दहकी क्षितिज क्षितिज में
तभी दूर बादल गहराया
सर्द हवा का झौंका आया
सराबोर वृष्टि में धूल कर
प्रकृति हर्षित हुई कण कण में
हर्ष अलौकिक क्षितिज क्षितिज में