(एक गुरु, भ्राता एवं एक फैन की ओर से एक गुमनाम कलाकार का आव्हान जो कही जीवन की दौड़ में खो गया है)
मञ्जूषा तुम गाओ
नए तराने फिर से छेड़ो
सुर कोई नया लगाओ
मञ्जूषा तुम गाओ
याद करो जब तुम गाती थी
मन की बगिया खिल जाती थी
गीत मधुर सुनने को जब
बहती हवा भी थम जाती थी
राग रंग बरसाओ
मञ्जूषा तुम गाओ
व्यस्त तुम्हारा जीवन माना
है अभाव समय का जाना
फिर भी अपनी कला की खातिर
सुनो! समय अवश्य बचाना
पंचम अलाप लगाओ
मञ्जूषा तुम गाओ
श्रोताओं को न तरसाओ
चलो फिर से इतिहास रचाओ
‘दीपक राग मल्हार भैरवी
सुर के रंग में रम जाओ
इश्वर का वरदान है
यूँ न इसे गंवाओ
मञ्जूषा तुम गाओ
वैष्णवी का ध्यान लगाकर
नए विलास के गीत सजाओ
सरगम की लड़ियाँ बिखराकर
आशा के नए गीत सजाओ
साहिल पर छा जाओ
मञ्जूषा तुम गाओ