जान देकर भी न हासिल हुए रिश्ते
क़ब्र उसकी कहीं बेहतर निकली
मददगार सभी चंद दूरी पर थे
जिस जगह बेचारे की साँसें निकली
हाल-ए-दिल किसी से कह न सका
भूलने की कोशिशें नाहक़ निकली
क्या लगाते हो दाम उसके पसीने का
आखिरी वक्त जब दुआ न निकली
चला गया वो मिट गए नाम-ओ-निशाँ
बातों में से मगर कई बातें निकली
बंद कमरों में दम तोड़ गया खालीपन
इंसां टूट पड़े थे जब उसकीअर्थी निकली