रूबरू हो तुम एहसास जानलेवा है
छू लिया तुमने क़यामत हो गयी है
शब्-ए-दीदार है हटती नहीं निगाहें
कहीं खो न दें तुम्हें पत्थर हो गयी हैं
आपके ख़यालों में गुज़रती हैं शामें
ख़्वाब-ओ-तस्सवुर में सुलह हो गयी है
ज़माने से आशना हैं पर डरता है दिल
अब छुपाए न बने मुश्किल हो गयी है
सर-ए- महफ़िल तलाश है किसकी
और किसकी नज़रें कायल हो गयी हैं
मेरे अंदाज़ पर पुरज़ोर हंस देना तेरा
मानो न मानो मुहब्बत हो गयी है
तुम तुम न रहो रहूं मैं भी मैं नहीं
तवारीख बनने की वजह हो गयी है
Wow uncle!
Vaise to urdu ni aati…pr jitni samjh aayi hum to fan ho gye 🙂
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THANKS PUNYA GOD BLESS
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