सुना है तेरे शहर में अदा से मिलते हैं लोग
दिल मिले न मिलें फिर भी मिलते हैं लोग
बंद दरवाज़े बयां कर देते कद आदम का
पक्के मकानों में कच्चे दिलों के लोग
जो पाना है तुम्हें है ज़िद कि हमें चलना होगा
अजनबी शहर में नई शर्तों पे रहना होगा
ख्वाहिशें नहीं मिट जाते हैं ख्वाहिशमंद जहाँ
सुकून छोड़ टूटती ख्वाहिशों में जीना होगा
तू बुलाता मुझे है वहां जो घर तेरा न हुआ
दम तोड़ देते जज्बात शहर कब किसका हुआ
तू जो उड़ गया था कभी सूखे पत्ते की मानिंद
न रह पाया तू वहां न कभी तू इस घर का हुआ
मैं चल दूंगा दोस्त जब आब-ओ-हवा बदलेगी
भरी भीड़ में दिल-ए-वीरानी की फिजां बदलेगी
ऊंचे मकानों में न तोड़ेंगे दम जब दिल के रिश्ते
उस रोज़ मेरे यार मेरी भी ज़िद बदलेगी