व्यर्थ के तानों को सुनकर
तुम हो जाना मायूस नहीं
जतन अगर कोई न समझे
करे मेहनत का गुणगान नहीं
सौंप दिया परिवार को जीवन
भूली अपने दुःख तमाम
गृहणी तुमको है प्रणाम
मात-पिता ने जैसा खोजा
घर तुमने स्वीकार किया
नए परिवेश में खुद को कैसे
सहज ही तुमने ढाल लिया
ससुराल पक्ष और पितृपक्ष
सब रिश्तों का मान रखा
बिना शिकायत परम्पराओं का
सच्चे मन से ध्यान रखा
पति बच्चों की प्रगति में
खटती रहती हो सुबह शाम
गृहणी तुमको है प्रणाम
सुबह से लेकर रात ढले तक
सबके हुकुम बजाती हो
भाभी पत्नी माँ बनकर
कर्तव्य निभाती जाती हो
हमदर्द बनी हो तुम सबकी
पर अपना दर्द छुपाती हो
स्वास्थ्य तुम्हारा बिगड़ रहा
पर संवारती सबके काम
गृहणी तुमको है प्रणाम
तुमसे है सृष्टि संस्कृति
तुम ही समाज निर्मात्री हो
सरस्वती सी धारा बन
सदियों को सींचती जाती हो
तुम लक्ष्मी हो अन्नपूर्णा बन
घर संसार चलाती हो
तुम हिम्मत जो हारोगी
रूठें चारों धाम
गृहणी तुमको है प्रणाम