देखा है किसी को टुकड़ों पर पलते
भूखा हो पेट और देखा हो लात खाते
बिना बात मारते हैं वो मुझको पत्थर
मैंने काटा हो बिना बात, कहीं देखा है!
पापा देखे नहीं माँ को ही बस जानता हूँ
तुम को ही अपना सब कुछ मानता हूँ
बख्शा है पेट उसने सताती है भूख मुझे
छीना हो हक़ किसी का, कभी देखा है!
गर्मी बेहाल करे सर्दी सताये मुझको
सर्द रातों में रोऊँ कि नींद न आये मुझको
धूप सेकने को जा बैठूँ तुम्हारी गाड़ी पर
करता हूँ रखवाली नहीं एहसान, देखा है!
तुम न दोगे जो सहारा तो कहाँ जाऊँगा
दुःख भरी दुनिया है तनहा मर जाऊंगा
मैं तो कुत्ता हूँ इंसान हो तुम इंसान रहो
कुत्ते की रोटी खाए हैवान, कहीं देखा है!