गए रोज़ खयालात मेरे चुपचाप थे
ज़िन्दगी के अजीब बड़े हालात थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे
न था होश मुझे न आवाज़ दी आपने
हमने बताया भी नहीं न पूछा आपने
वर्ना दरमियाँ हज़ारों दबे सवालात थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे
एक वक्त था न होते थे ज़मीं पर पैर
आलम है अब न अजनबी हैं न गैर
हौसले आसमानों कभी हम उस्ताद थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे
बमुश्किल थामी हैं दिल की धड़कनें
सुलझाई हैं कुछ ज़िन्दगी की उलझनें
गम-ए-इश्क़ में हम वर्ना बीमार थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे
मिल गए हैं जो अंजानी इस राह पर
कर लो शिकवा दिलों की चाह पर
मगर न देखो ऐसे कि अनजान थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे
ज़िन्दगी के अजीब बड़े हालात थे
गए रोज़ ख़यालात मेरे चुपचाप थे