हज़ारों चेहरों के दरमियाँ इंसां इक सगा होता है
बनकर के जो खास दिल के नगर में जगह लेता है
कैसे कोई मन ही मन सपनों के महल सजा लेता है
बना कर किसी को देवता मन मंदिर में बिठा लेता है
बढ़ती रहती है ज़िन्दगी और बदलती है ज़िन्दगी
साथी मन का मगर मन मंदिर में बसा रहता है
गुज़रते वक्त के साथ हर चीज़ पुरानी होती है
सपनों का साथी मगर हर वक्त जवां रहता है
यार मिलते हैं बिछड़ते है रिश्ते और नए बनते हैं
आखिरी सांस तक वह शख्स अपना बना रहता है
किसी के मन मंदिर में तुम भी घर बसा लो घर दोस्तों
किसी का साथ किसी की याद हर वक्त जवां रखता है
इश्क़ मज़हब इश्क़ ईमा और इश्क़ ही नूर-ए-खुदा है
इबादत करने वालों को खुदा ज़न्नत में पनाह देता है