मुफलिसी और फाकों में पैदा हुआ
ज़िल्लत और ठोकरों में पला था मैं
मेरी खता मेरा गुनाह बस इतना था
पेट की भूख से न लड़ सका था मैं
छीन लेने की लत इस कदर बढ़ी
रोटी से इज्जत तक सब छीना मैंने
जब नहीं मिला मन के मुताबिक़
फ़ेंक तेज़ाब चेहरों पर जलाया मैंने
भाग गया कानून के शिकंजे से दूर
गुम हो गया फिर आज और कल में
बदहवासी जिस मुकाम पर तमाम हुई
फंसा था मैं दहशतगर्दी के दलदल में
जेहाद के नाम पर बरपाया खुनी कहर
तबाह किये आशियाने काँप गए शहर
कर दिए बंद दरवाजे सभी ज़मीर के
वक्त रहते असलियत न आयी नज़र
सलाखों के पीछे ये है फांसी की रात
कल का सूरज भी न देख पाउँगा मैँ
कसेगा कानून शिकंजा मेरी साँसों पर
बदनसीबी की ख़ाक हो जाऊँगा मैँ
कल के बाद न होगा कोई वज़ूद मेरा
असली ज़ालिम बेशक हाज़िर होंगे
मुफलिसी भूख हवस और ज़िल्लत
आखिर कब दुनिया से रुखसत होंगे
आग दोजख की में जल रहा हूँ मैँ
तू सुन रहा है न खुदा! रो रहा हूँ मैँ