बाखुदा इल्म है कि तुम न आओगे
निशाँ क़दमों के समेटने बैठा हूँ
अचानक छुप गए यूँ दूर कहीं
दिल को एहसास दिलाने बैठा हूँ
मेरी तन्हाई को आ कर संवारा तुमने
राहों को मंज़िल की तरफ मोड़ दिया
हमसफ़र रहोगे साथ किया था वादा
क्यों तनहा भटकने के लिए छोड़ दिया
अब न गूंजती है कोई आवाज़ कानों में
न कभी ख़त्म हो बियाबाँ सा खालीपन है
सिर्फ अंन्धेरा और आलम-ए-गर्दिश है
बर्बादी रूबरू है साथ मेरी उलझन है
मौला अब दर्द बर्दाश्त नहीं होता
ग़म का समंदर और न पी पाउँगा
ख़ाक कर लुंगा मैं साँसें अपनी
या ज़माने से दूर चला जाऊंगा
नहीं मुमकिन जुदा तेरी याद से रहना
है मेरे पास ये मासूम अमानत तेरी
खुद को भूल संवारूँगा मैं इसका कल
आसमां छू कर आएगी सुन मुस्कान तेरी
इसके अक्स में जब थामोगी हाथ मेरा
बन जायेगी फिर से नयी कहानी मेरी