(An effort to complete a ‘Doha’ , written by my father around forty years back )
तारागण गिरि मेदिनी, ससि सूर अरु व्योम
सर्व साध्य विनती सुनो जो कुछ कहता ‘ओम’!
क्या कहता है ‘ओम’ कि जो नर तुमको ध्यावैं
संवरें बिगरे काज नौका भव पार लगावैं!
जेहि विधि सेवित राम श्री हनुमानजी दरसन पावैं
तेहि विधि होइ कल्याण अनंत वैकुण्ठ कूं जावैं!
हठ आडम्बर त्याग सूत्र सुनो प्रभु भक्ति का
आसक्ति मद लोभ विकार तजो निज मन का!