आज सुबह आफिस जाते समय
अपनी गाड़ी के अंदर से मैंने देखा
एक आम आदमी ऊंची सी
साईकिल पर जा रहा था ी
उसके साथ उसका छोटा बच्चा
आगे बैठा था जो सफर का आनंद
अपने तरीके से ले रहा था ी
पीछे करियर पर उसकी पत्नी बैठी थी
जिसने उत्तर भारतीय
देहाती कपडे पहने थे
उसकी गोदी में एक बिलकुल छोटा
बच्चा गहरी नींद में सो रहा था ी
उसके चेहरे पर इतनी शांति थी
कि लग रहा था कि वह दुनिया के
सबसे सुरक्षित और आरामदायक
बिस्तर पर सो रहा हो
शायद अमेरिका के राष्ट्रपति
को भी वह सुकून नसीब न होगा
इस तरह पूरा परिवार
खुशी के सफर पर चले जा रहा था ी
इधर मैं भी गाड़ी में जा रहा था, अकेला ी
मैं उनके सामने बहुत अधूरा सा
और छोटा महसूस कर रहा था
यह सोचकर कि क्या साधनों क़े पीछे भागकर
उन्हें एकत्रित करना ही जीवन है
अथवा परिवार और समाज क़े
साथ रहकर छोटी छोटी खुशियां
बांटने से वास्तविक ख़ुशी मिलती है l
साधनों का इस्तेमाल साध्य
परिवार क़े साथ रहने का आनंद)
को पाने क़े लिए हो तो बेहतर है,
न्यथा यह जीवन एक मशीन क़े सिवाय
कुछ नहीं है! और इंसान
कोई यन्त्र या रोबोट नहीं I है न